Sunday, May 7, 2017

Simaria and Chamtha Ghat in Begusarai District: A Religious Annotation

मिथिला की गंगा के तट का माहात्म्य, चौमथ घाट एवं सिमरिया के सन्दर्भ में
भवनाथ झा
(यह आलेख 2016 ई. में बेगूसराय, संग्रहालय के वार्षिकोत्सव के अवसर पर पढ़ा गया है)
हाल के कुछ वर्षों में पाण्डुलिपियों के अध्ययन एवं प्रकाशन के क्रम में मुझे रुद्रयामल तन्त्र के एक अंश के नाम पर परवर्ती काल में लिखी दो रचनाएँ मिलीं हैं, जिनमें मिथिला के इतिहास एवं भूगोल पर कुछ सामग्री है। 
एक रचना रुद्रयामलसारोद्धारे तीर्थविधिः के नाम से है जिसका प्रकाशन मैथिली साहित्य संस्थान की शोधपत्रिका मिथिला भारती के नवांक 1 में हुआ है। इसमें कुल 98 श्लोक हैं। इसमें अधिकांश वर्णन मिथिला से बाहर के तीर्थों काशी प्रयाग, गंगा-सरयू संगम क्षेत्र आदि का है, किन्तु घटना चक्र के केन्द्र में मिथिला का गंगातट है, जो बेगूसराय जिला में अवस्थित चमथा घाट है।
ध्यातव्य है कि यह प्रक्षिप्त अंश है, क्योंकि रुद्रयामल तन्त्र की रचना कम से कम 10वीं शती से पहले हो चुकी है। एसियाटिक सोसायटी में ब्रह्मयामल तन्त्र की एक पाण्डुलिपि 1052 ई. में प्रतिलिपि की गयी उपलब्ध है,  जिसमें रुद्रयामल तन्त्र उल्लेख हुआ है। अतः हाल में रुद्रयामल के नाम पर जो तीन अंश उपलब्ध हुए हैं, उनमें से कोई भी अंश आन्तरिक साक्ष्यों के आधार पर 12वीं शती से प्राचीन नहीं हो सकता, अतः इन्हें ऐतिहासिक दृष्टि से परवर्ती प्रक्षेप ही माना जायेगा, जिसकी रचना किसी क्षेत्रीय विद्वान् के द्वारा की गयी है, फलतः इन अंशों में जो भी उल्लेख है वह स्थानीय इतिहास के लिए महत्त्वपूर्ण है।
रुद्रयामलसारोद्धारे तीर्थविधिः के अनुसार पाण्डवग्राम (वर्तमान समस्तीपुर जिला का पाँड गाँव) का एक व्यापारी सुधामा तीर्थाटन करना चाहता है वह अपने गुरु से पूछता है कि मुझे शास्त्र के अनुसार कहाँ कहाँ कैसे तीर्थाटन करना चाहिए। इस प्रश्न पर गुरु उसे तीर्थविधि का उपदेश करते हुए कहते हैं कि अपने घर के सबसे निकट में जो मन्दिर हो वहाँ पहले दर्शन करें फिर अपने गाँव के निकटवर्ती किसी महानदी के तट पर जाकर तीन रात्रि बितावें। इसके बाद हर प्रकार से पवित्र होकर वहाँ से अन्य तीर्थों के लिए यात्रा प्रारम्भ करें।
इस अंश में पाण्डवग्राम से निकटवर्ती गंगातट का स्थान निरूपित करते हुए गुरु उपदेश करते हैं कि गंगा के किनारे एक शेमलग्राम है, जो शाल्मली यानी सेमल के वन के बीच है, वहाँ चतुर्मठ तीर्थ है। हर प्रकार से पवित्र इस तीर्थ पर जाकर तुम तीन रात्रि गंगातट का सेवन करो तब आगे की यात्रा पर निकलोगे। इस उपदेश पर गुरु चतुर्मठ तीर्थ की स्थापना के बारे में कहते हैं कि पूर्व में विदेह के किसी राजा ने भी यहाँ से तीर्थयात्रा आरम्भ की थी। वे जब यहाँ पहुँचे तब इस शेमलग्राम में घनघोर जंगल था, जिसमें ऋषि-मुनि तपस्या कर रहे थे और गंगा का निर्मल तट बहुत सुन्दर था। राजा को यह सब बहुत अच्छा लगा तो उन्होंने यहाँतक पहुँचने का मार्ग बनवाया, चार मठों का निर्माण कराया और तीर्थ पुरोहितों को बसाया। 

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