मिथिला
क्षेत्र की मिट्टी बहुत कोमल है और यहाँ बाढ के कारण बहुत तबाही हुई है। पहाड नहीं
होने के कारण कच्ची मिट्टी, लकड़ी घास-फूस से यहाँ घर बनाने की परम्परा रही है अतः
यहाँ अधिक पुराने अवशेष पुरातात्त्विक साक्ष्य के रूप में मिलना असंभव है। अतः
किसी स्थान के निर्धारण के लिए हमे साहित्यिक स्रोतों और किसी स्थान के प्रति
लोगों की श्रद्धा को ही स्रोत मानने की मजबूरी है। ये दोनों स्रोत जहाँ एक दूसरे
से मेल खाते हैं उसे ऐतिहासिक साक्ष्य माना जा सकता है। सीता के जन्मस्थान के
निर्धारण के विषय में भी यहीं स्थिति है। इनमें से साहित्यिक स्रोत विशेष
महत्त्वपूर्ण हैं। राजा जनक की पुत्री जानकी का जन्म मिथिला में हुआ था इस तथ्य पर
कोई मतभेद नहीं है। वाल्मीकि रामायण से लेकर जहाँ कहीं भी सीता के जन्म का उल्लेख
हुआ है, मिथिला का उल्लेख हुआ है। प्राचीन साहित्यों में मिथिला का उल्लख दो
प्रकार से मिलता है
1. राजधानी के रूप में
2. पूरे राष्ट्र के रूप में।
बौद्ध
पाली ग्रन्थों में विदेह में मिथिला की अवस्थिति मानी गयी है-
1. अथ खो उत्तरो माणवो सत्तन्नं मासानं अच्चयेन
विदेहेसु येन मिथिला तेन चारिकं पक्कामि। (ब्रह्मायु सुत्त)
2. मिथिला च विदेहानं, चम्पा अङ्गेसु मापिता।
बाराणसी च कासीनं, एते गोविन्दमापिताति॥ (महागोविन्द सुत्त)
यहाँ स्पष्ट रूप से मिथिला एक क्षेत्र का नाम है, जो राजधानी
थी। पूरे राष्ट्र के रूप में मिथिला का उल्लेख 1000 वर्ष से पुराना नहीं है।
इस
प्रकार, सीता के जन्मस्थान मिथिला का उल्लेख जहाँ कहीं भी हम देखते हैं, तो हमें
मानना होगा कि यह मिथिला विदेह राज्य की राजधानी थी।
यह मिथिला कहाँ थी,
इसके निर्धारण के क्रम में विद्वानों ने अनेक तर्क प्रस्तुत किया है। वाल्मीकि
रामायण में मिथिला की अवस्थिति का एक ही साक्ष्य है जिसमें कहा गया है कि गंगा और
सोन के संगम पर नदी पार कर विश्वामित्र राम और लक्ष्मण के साथ विशाला नामक नगरी
पहुँचे और वहाँ से पूर्व-उत्तर कोण की ओर चलकर राजा जनक की यज्ञ-स्थली पर पहुँचे।
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