Friday, May 26, 2017

Alankarasagara by Dinabandhu Jha

Book published under supervision of Pt. Bhavanath Jha, Book Publication Consultant.
Brahmi Publication Consultancy, Patna
We provide
1.Pre-publication works in English, Hindi, Maithili and Sanskrit- Typing, formatting, designing, digital printing of pre-published book, cover designing, font issue, pdf to text conversion, indexing, Downloading & Printing of rare book from internet. Proof reading, Review writing &etc.
2.       E-book making
3.       Printing of Book
4.    Transcription of Manuscript: From Old Devnagari to Modern Davnagari, From Tirhuta/Mithilakshar to Modern Devnagari.
Contacts: 
Phone: 9430676240


लेखक- महावैयाकरण दीनबन्धु झा
सम्पादक- गोविन्द झा
ISBN 978-93-84394-27-1
प्रकाशन वर्ष- 2017
प्रकाशन- साहित्यिकी, सरिसब-पाही, मधुबनी, 847424







Sunday, May 7, 2017

Simaria and Chamtha Ghat in Begusarai District: A Religious Annotation

मिथिला की गंगा के तट का माहात्म्य, चौमथ घाट एवं सिमरिया के सन्दर्भ में
भवनाथ झा
(यह आलेख 2016 ई. में बेगूसराय, संग्रहालय के वार्षिकोत्सव के अवसर पर पढ़ा गया है)
हाल के कुछ वर्षों में पाण्डुलिपियों के अध्ययन एवं प्रकाशन के क्रम में मुझे रुद्रयामल तन्त्र के एक अंश के नाम पर परवर्ती काल में लिखी दो रचनाएँ मिलीं हैं, जिनमें मिथिला के इतिहास एवं भूगोल पर कुछ सामग्री है। 
एक रचना रुद्रयामलसारोद्धारे तीर्थविधिः के नाम से है जिसका प्रकाशन मैथिली साहित्य संस्थान की शोधपत्रिका मिथिला भारती के नवांक 1 में हुआ है। इसमें कुल 98 श्लोक हैं। इसमें अधिकांश वर्णन मिथिला से बाहर के तीर्थों काशी प्रयाग, गंगा-सरयू संगम क्षेत्र आदि का है, किन्तु घटना चक्र के केन्द्र में मिथिला का गंगातट है, जो बेगूसराय जिला में अवस्थित चमथा घाट है।
ध्यातव्य है कि यह प्रक्षिप्त अंश है, क्योंकि रुद्रयामल तन्त्र की रचना कम से कम 10वीं शती से पहले हो चुकी है। एसियाटिक सोसायटी में ब्रह्मयामल तन्त्र की एक पाण्डुलिपि 1052 ई. में प्रतिलिपि की गयी उपलब्ध है,  जिसमें रुद्रयामल तन्त्र उल्लेख हुआ है। अतः हाल में रुद्रयामल के नाम पर जो तीन अंश उपलब्ध हुए हैं, उनमें से कोई भी अंश आन्तरिक साक्ष्यों के आधार पर 12वीं शती से प्राचीन नहीं हो सकता, अतः इन्हें ऐतिहासिक दृष्टि से परवर्ती प्रक्षेप ही माना जायेगा, जिसकी रचना किसी क्षेत्रीय विद्वान् के द्वारा की गयी है, फलतः इन अंशों में जो भी उल्लेख है वह स्थानीय इतिहास के लिए महत्त्वपूर्ण है।
रुद्रयामलसारोद्धारे तीर्थविधिः के अनुसार पाण्डवग्राम (वर्तमान समस्तीपुर जिला का पाँड गाँव) का एक व्यापारी सुधामा तीर्थाटन करना चाहता है वह अपने गुरु से पूछता है कि मुझे शास्त्र के अनुसार कहाँ कहाँ कैसे तीर्थाटन करना चाहिए। इस प्रश्न पर गुरु उसे तीर्थविधि का उपदेश करते हुए कहते हैं कि अपने घर के सबसे निकट में जो मन्दिर हो वहाँ पहले दर्शन करें फिर अपने गाँव के निकटवर्ती किसी महानदी के तट पर जाकर तीन रात्रि बितावें। इसके बाद हर प्रकार से पवित्र होकर वहाँ से अन्य तीर्थों के लिए यात्रा प्रारम्भ करें।
इस अंश में पाण्डवग्राम से निकटवर्ती गंगातट का स्थान निरूपित करते हुए गुरु उपदेश करते हैं कि गंगा के किनारे एक शेमलग्राम है, जो शाल्मली यानी सेमल के वन के बीच है, वहाँ चतुर्मठ तीर्थ है। हर प्रकार से पवित्र इस तीर्थ पर जाकर तुम तीन रात्रि गंगातट का सेवन करो तब आगे की यात्रा पर निकलोगे। इस उपदेश पर गुरु चतुर्मठ तीर्थ की स्थापना के बारे में कहते हैं कि पूर्व में विदेह के किसी राजा ने भी यहाँ से तीर्थयात्रा आरम्भ की थी। वे जब यहाँ पहुँचे तब इस शेमलग्राम में घनघोर जंगल था, जिसमें ऋषि-मुनि तपस्या कर रहे थे और गंगा का निर्मल तट बहुत सुन्दर था। राजा को यह सब बहुत अच्छा लगा तो उन्होंने यहाँतक पहुँचने का मार्ग बनवाया, चार मठों का निर्माण कराया और तीर्थ पुरोहितों को बसाया। 

Archeological Remains at Vanakhandinath Shiva temple at Koilakha near Bhadrakali Temple

कोइलख गामक वनखण्डीनाथ महादेव मन्दिरमे पुरातात्त्विक सामग्री

दिनांक 05 मई, 2017 कें हम कोइलख गाम स्थित भद्रकाली मन्दिरमे दर्शनक लेल गेलहुँ। ओहीठाम मन्दिरक सामने उत्तरमे एकटा महादेव मन्दिर अछि। ई पूरा परिसर ऊँच डीहपर अवस्थित अछि। परिसरक द्वारपर वनखण्डीनाथ महादेव मन्दिर लिखल अछि। एकर ई नाम कोन साक्ष्यक आधारपर पड़ल, से अज्ञात अछि। मन्दिरमे दू टा शिवलिंग स्थापित छैक जे नव अछि। एही गर्भगृहमे दक्षिण-पश्चिम कोणमे एकटा चबूतरापर कारी पाथरक दू टा पुरातात्त्विक सामग्री अछि जे एहि स्थानक प्राचीनताक प्रमाण अछि। मन्दिरक पुजारीक सूचनाक अनुसार एही परिसर सँ ई दूनू सामग्री भेटल, जकरा एकटा चबूतरा बनाए राखि देल गेल।



Tuesday, May 2, 2017

Birthplace of Goddess Sita


मिथिला क्षेत्र की मिट्टी बहुत कोमल है और यहाँ बाढ के कारण बहुत तबाही हुई है। पहाड नहीं होने के कारण कच्ची मिट्टी, लकड़ी घास-फूस से यहाँ घर बनाने की परम्परा रही है अतः यहाँ अधिक पुराने अवशेष पुरातात्त्विक साक्ष्य के रूप में मिलना असंभव है। अतः किसी स्थान के निर्धारण के लिए हमे साहित्यिक स्रोतों और किसी स्थान के प्रति लोगों की श्रद्धा को ही स्रोत मानने की मजबूरी है। ये दोनों स्रोत जहाँ एक दूसरे से मेल खाते हैं उसे ऐतिहासिक साक्ष्य माना जा सकता है। सीता के जन्मस्थान के निर्धारण के विषय में भी यहीं स्थिति है। इनमें से साहित्यिक स्रोत विशेष महत्त्वपूर्ण हैं। राजा जनक की पुत्री जानकी का जन्म मिथिला में हुआ था इस तथ्य पर कोई मतभेद नहीं है। वाल्मीकि रामायण से लेकर जहाँ कहीं भी सीता के जन्म का उल्लेख हुआ है, मिथिला का उल्लेख हुआ है। प्राचीन साहित्यों में मिथिला का उल्लख दो प्रकार से मिलता है
1.     राजधानी के रूप में
2.     पूरे राष्ट्र के रूप में।
बौद्ध पाली ग्रन्थों में विदेह में मिथिला की अवस्थिति मानी गयी है-
1.     अथ खो उत्तरो माणवो सत्तन्‍नं मासानं अच्‍चयेन विदेहेसु येन मिथिला तेन चारिकं पक्‍कामि। (ब्रह्मायु सुत्त)
2.     मिथिला च विदेहानं, चम्पा अङ्गेसु मापिता।
बाराणसी च कासीनं, एते गोविन्दमापिताति॥ (महागोविन्द सुत्त)
यहाँ स्पष्ट रूप से मिथिला एक क्षेत्र का नाम है, जो राजधानी थी। पूरे राष्ट्र के रूप में मिथिला का उल्लेख 1000 वर्ष से पुराना नहीं है।
    इस प्रकार, सीता के जन्मस्थान मिथिला का उल्लेख जहाँ कहीं भी हम देखते हैं, तो हमें मानना होगा कि यह मिथिला विदेह राज्य की राजधानी थी।
यह मिथिला कहाँ थी, इसके निर्धारण के क्रम में विद्वानों ने अनेक तर्क प्रस्तुत किया है। वाल्मीकि रामायण में मिथिला की अवस्थिति का एक ही साक्ष्य है जिसमें कहा गया है कि गंगा और सोन के संगम पर नदी पार कर विश्वामित्र राम और लक्ष्मण के साथ विशाला नामक नगरी पहुँचे और वहाँ से पूर्व-उत्तर कोण की ओर चलकर राजा जनक की यज्ञ-स्थली पर पहुँचे।

Where was the Mithila and the capital of King Janak

The site of ancient Mithila प्राचीन काल की मिथिला नगरी का स्थल-निर्धारण (जानकी-जन्मभूमि की खोज)  -भवनाथ झा मिथिला क्षेत्र की मिट्टी बहु...