Thursday, July 20, 2017

Lalgachi by Amalendu Shekhar Pathak

Book review 

मैथिलीमे साहित्य अकादमीक बालसाहित्यक पुरस्कारक लेल चयनित उपन्यासक मादे पढलाक बाद एकटा पाठकक रूपमे पहिल प्रतिक्रिया। -भवनाथ झा (दिनांक 21 जुलाई, 2017)

श्री अमलेन्दुशेखर पाठकजीक लालगाछी उपन्यास भेटल। ओकरा पढलाक बाद नीक लागल। किशोर अमोल एकर चरितनायक थिकाह जे गर्मीक छुट्टी बितएबाक लेल अपन गाम आएल छथि। हुनका संग किशोर-मित्र सभ सेहो छथिन्ह। ई सभ मीलि कए अपन गाममे अन्तरराष्ट्रीय घुसपैठक पर्दाफास करैत छथि आ अपन गामकें उजरबासँ बचा लैत छथि। हिनक गाम भारतवर्षक प्रतीक थीक तँ लालगाछी मिथिलाक प्रतीक। लालगाछीक भूमिकें खरीदि ओहिठामसँ आतंकवादी गतिविधि चलएबाक अन्तरराष्ट्रीय मनसूबाके ओ किशोरदल मटियामेट कए दैत अछि तकरे खिस्सा थीक लालगाछी। 

Friday, May 26, 2017

Alankarasagara by Dinabandhu Jha

Book published under supervision of Pt. Bhavanath Jha, Book Publication Consultant.
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लेखक- महावैयाकरण दीनबन्धु झा
सम्पादक- गोविन्द झा
ISBN 978-93-84394-27-1
प्रकाशन वर्ष- 2017
प्रकाशन- साहित्यिकी, सरिसब-पाही, मधुबनी, 847424







Sunday, May 7, 2017

Simaria and Chamtha Ghat in Begusarai District: A Religious Annotation

मिथिला की गंगा के तट का माहात्म्य, चौमथ घाट एवं सिमरिया के सन्दर्भ में
भवनाथ झा
(यह आलेख 2016 ई. में बेगूसराय, संग्रहालय के वार्षिकोत्सव के अवसर पर पढ़ा गया है)
हाल के कुछ वर्षों में पाण्डुलिपियों के अध्ययन एवं प्रकाशन के क्रम में मुझे रुद्रयामल तन्त्र के एक अंश के नाम पर परवर्ती काल में लिखी दो रचनाएँ मिलीं हैं, जिनमें मिथिला के इतिहास एवं भूगोल पर कुछ सामग्री है। 
एक रचना रुद्रयामलसारोद्धारे तीर्थविधिः के नाम से है जिसका प्रकाशन मैथिली साहित्य संस्थान की शोधपत्रिका मिथिला भारती के नवांक 1 में हुआ है। इसमें कुल 98 श्लोक हैं। इसमें अधिकांश वर्णन मिथिला से बाहर के तीर्थों काशी प्रयाग, गंगा-सरयू संगम क्षेत्र आदि का है, किन्तु घटना चक्र के केन्द्र में मिथिला का गंगातट है, जो बेगूसराय जिला में अवस्थित चमथा घाट है।
ध्यातव्य है कि यह प्रक्षिप्त अंश है, क्योंकि रुद्रयामल तन्त्र की रचना कम से कम 10वीं शती से पहले हो चुकी है। एसियाटिक सोसायटी में ब्रह्मयामल तन्त्र की एक पाण्डुलिपि 1052 ई. में प्रतिलिपि की गयी उपलब्ध है,  जिसमें रुद्रयामल तन्त्र उल्लेख हुआ है। अतः हाल में रुद्रयामल के नाम पर जो तीन अंश उपलब्ध हुए हैं, उनमें से कोई भी अंश आन्तरिक साक्ष्यों के आधार पर 12वीं शती से प्राचीन नहीं हो सकता, अतः इन्हें ऐतिहासिक दृष्टि से परवर्ती प्रक्षेप ही माना जायेगा, जिसकी रचना किसी क्षेत्रीय विद्वान् के द्वारा की गयी है, फलतः इन अंशों में जो भी उल्लेख है वह स्थानीय इतिहास के लिए महत्त्वपूर्ण है।
रुद्रयामलसारोद्धारे तीर्थविधिः के अनुसार पाण्डवग्राम (वर्तमान समस्तीपुर जिला का पाँड गाँव) का एक व्यापारी सुधामा तीर्थाटन करना चाहता है वह अपने गुरु से पूछता है कि मुझे शास्त्र के अनुसार कहाँ कहाँ कैसे तीर्थाटन करना चाहिए। इस प्रश्न पर गुरु उसे तीर्थविधि का उपदेश करते हुए कहते हैं कि अपने घर के सबसे निकट में जो मन्दिर हो वहाँ पहले दर्शन करें फिर अपने गाँव के निकटवर्ती किसी महानदी के तट पर जाकर तीन रात्रि बितावें। इसके बाद हर प्रकार से पवित्र होकर वहाँ से अन्य तीर्थों के लिए यात्रा प्रारम्भ करें।
इस अंश में पाण्डवग्राम से निकटवर्ती गंगातट का स्थान निरूपित करते हुए गुरु उपदेश करते हैं कि गंगा के किनारे एक शेमलग्राम है, जो शाल्मली यानी सेमल के वन के बीच है, वहाँ चतुर्मठ तीर्थ है। हर प्रकार से पवित्र इस तीर्थ पर जाकर तुम तीन रात्रि गंगातट का सेवन करो तब आगे की यात्रा पर निकलोगे। इस उपदेश पर गुरु चतुर्मठ तीर्थ की स्थापना के बारे में कहते हैं कि पूर्व में विदेह के किसी राजा ने भी यहाँ से तीर्थयात्रा आरम्भ की थी। वे जब यहाँ पहुँचे तब इस शेमलग्राम में घनघोर जंगल था, जिसमें ऋषि-मुनि तपस्या कर रहे थे और गंगा का निर्मल तट बहुत सुन्दर था। राजा को यह सब बहुत अच्छा लगा तो उन्होंने यहाँतक पहुँचने का मार्ग बनवाया, चार मठों का निर्माण कराया और तीर्थ पुरोहितों को बसाया। 

Archeological Remains at Vanakhandinath Shiva temple at Koilakha near Bhadrakali Temple

कोइलख गामक वनखण्डीनाथ महादेव मन्दिरमे पुरातात्त्विक सामग्री

दिनांक 05 मई, 2017 कें हम कोइलख गाम स्थित भद्रकाली मन्दिरमे दर्शनक लेल गेलहुँ। ओहीठाम मन्दिरक सामने उत्तरमे एकटा महादेव मन्दिर अछि। ई पूरा परिसर ऊँच डीहपर अवस्थित अछि। परिसरक द्वारपर वनखण्डीनाथ महादेव मन्दिर लिखल अछि। एकर ई नाम कोन साक्ष्यक आधारपर पड़ल, से अज्ञात अछि। मन्दिरमे दू टा शिवलिंग स्थापित छैक जे नव अछि। एही गर्भगृहमे दक्षिण-पश्चिम कोणमे एकटा चबूतरापर कारी पाथरक दू टा पुरातात्त्विक सामग्री अछि जे एहि स्थानक प्राचीनताक प्रमाण अछि। मन्दिरक पुजारीक सूचनाक अनुसार एही परिसर सँ ई दूनू सामग्री भेटल, जकरा एकटा चबूतरा बनाए राखि देल गेल।



Tuesday, May 2, 2017

Birthplace of Goddess Sita


मिथिला क्षेत्र की मिट्टी बहुत कोमल है और यहाँ बाढ के कारण बहुत तबाही हुई है। पहाड नहीं होने के कारण कच्ची मिट्टी, लकड़ी घास-फूस से यहाँ घर बनाने की परम्परा रही है अतः यहाँ अधिक पुराने अवशेष पुरातात्त्विक साक्ष्य के रूप में मिलना असंभव है। अतः किसी स्थान के निर्धारण के लिए हमे साहित्यिक स्रोतों और किसी स्थान के प्रति लोगों की श्रद्धा को ही स्रोत मानने की मजबूरी है। ये दोनों स्रोत जहाँ एक दूसरे से मेल खाते हैं उसे ऐतिहासिक साक्ष्य माना जा सकता है। सीता के जन्मस्थान के निर्धारण के विषय में भी यहीं स्थिति है। इनमें से साहित्यिक स्रोत विशेष महत्त्वपूर्ण हैं। राजा जनक की पुत्री जानकी का जन्म मिथिला में हुआ था इस तथ्य पर कोई मतभेद नहीं है। वाल्मीकि रामायण से लेकर जहाँ कहीं भी सीता के जन्म का उल्लेख हुआ है, मिथिला का उल्लेख हुआ है। प्राचीन साहित्यों में मिथिला का उल्लख दो प्रकार से मिलता है
1.     राजधानी के रूप में
2.     पूरे राष्ट्र के रूप में।
बौद्ध पाली ग्रन्थों में विदेह में मिथिला की अवस्थिति मानी गयी है-
1.     अथ खो उत्तरो माणवो सत्तन्‍नं मासानं अच्‍चयेन विदेहेसु येन मिथिला तेन चारिकं पक्‍कामि। (ब्रह्मायु सुत्त)
2.     मिथिला च विदेहानं, चम्पा अङ्गेसु मापिता।
बाराणसी च कासीनं, एते गोविन्दमापिताति॥ (महागोविन्द सुत्त)
यहाँ स्पष्ट रूप से मिथिला एक क्षेत्र का नाम है, जो राजधानी थी। पूरे राष्ट्र के रूप में मिथिला का उल्लेख 1000 वर्ष से पुराना नहीं है।
    इस प्रकार, सीता के जन्मस्थान मिथिला का उल्लेख जहाँ कहीं भी हम देखते हैं, तो हमें मानना होगा कि यह मिथिला विदेह राज्य की राजधानी थी।
यह मिथिला कहाँ थी, इसके निर्धारण के क्रम में विद्वानों ने अनेक तर्क प्रस्तुत किया है। वाल्मीकि रामायण में मिथिला की अवस्थिति का एक ही साक्ष्य है जिसमें कहा गया है कि गंगा और सोन के संगम पर नदी पार कर विश्वामित्र राम और लक्ष्मण के साथ विशाला नामक नगरी पहुँचे और वहाँ से पूर्व-उत्तर कोण की ओर चलकर राजा जनक की यज्ञ-स्थली पर पहुँचे।

Friday, January 20, 2017

Miracle of Gems Therapy by Dr. Binadanand Jha "Vishwabandhu"

Thursday, January 5, 2017


Miracle of Gems Therapy by Dr. Binodanand Jha "Vishwabandhu"

Book published under supervision of Pt. Bhavanath Jha, Book Publication Consultant.
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MIRACLE OF GEMS THERAPY
14th SERIES OF OCCULT SCIENCE FOR THE MASSES
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Dr.  Binodanad Jha “Vishwabandhu”
                   B.COM (HONS) M.A.B.L MDEH HMM (HONS)
                    Astrologer, Gemologist, & Homoeopath
Dr. B N JHA
ASHRAM, OCCULT HOUSE, WEST OF S.P’S BUNGLOW,
SRINAGARHATA, PURNIA, BIHAR, INDIA
(M) PH.9936595506 -09473129595./9504721777
Sri P. K. JHA  FLAT NO.-02,
TULSI VIHAR, PLOTNO. 55, SECTOR-19,  KHARGHAR,
NAVI MUMBAI-410210 (M) PH. 9869844756

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E-mail:- bnjha1936@Yahoo.co.in, bnjha1936@Yahoo.co.in
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First Edition - 200            
 JANUARY  2017
DONATION PRICE - Rs. 250/
    
FROM THIS BOOK-
Look at the hands of people around you in the 20th and 21st century. The miracle of gems has caught them. There are ‘scientific’ minded people who are ashamed to think that gems can have any effect on men.  Man is a product of osmosis of the physical and the mental. The body and the mind are equally part of our life. They inter penetrate each other. We cannot now restrict ourselves to the metrics of I.Q. We are compelled to admit E.Q. into the comprehensive understanding of human life.
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Saral Chikitsa by Dr. Binodanad Jha "Vishwabandhu"

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सरल चिकित्सा
मैथिली
लेखक- डॉ. बिनोदानन्द झा विश्वबन्धु
वर्ष: 2017
सर्वाधिकार सुरक्षित
प्राप्ति स्थान-
1 आश्रमहाउस न- 038/129
एस- पी- कोठी के पश्चिमश्रीनगर हातापूर्णियाँबिहार
2 श्री पी के झा फ्लैट न0-02, तुलसी बिहारप्लौट न0-55,
सेक्टर-19, खारधरनवी मुम्बई-410210
3 श्री पी के झा
आफिसर्स फ्लैट न0-304, नेशनल इस्टिच्यूट फ फैशन टेक्नोलोजी
पटना-800001
दूरभाष- 09931595506, 09869844756, 09473129595, 8877576842
पी पी बन्दना झा

Email:   bnjha1936@yahoo.co.in, pkjhaji@yahoo.co.inPkjhaji@gmail.com
सहयोग दान राशि- 100/
मुद्रक- वातायन मीडिया एण्ड पब्लिकेशन्सप्रा. लि.फ्रेजर रोड पटना- 800001
फोन: 0612-2222920मो- 9431040914

(मैथिलीमे तकनीकी विषय पर पुस्तक लेखनक क्षेत्र मे ई पुस्तक महत्त्वपूर्ण अछि। होम्योपैथी पद्धतिसँ चिकित्साविषयक ई पुस्तक मैथिली भाषा साहित्यक लेल लेखकक अनुपम योगदान अछि।)
लेखकक प्राक्कथन
हमरा होम्योपैथी दवाइपर विश्वास एकदम नइं छल। 1962मे कटिहारमे हमरा पेट खराब भ गेल तँ एलोपैथीमे क्लोरोस्टेप लेबा लजा रहल रही। श्री मिस्टरबाबूक संग छला। ओ होम्योपैथीक डाॅक्टर कत गेला ओ डाॅक्टर हमरा एक खुराक दवाइ आग्रह कऽ खुआ देलनि। ओ दवाइ रामबाण जेना काज केलक आर हमरा पेट ठीक भऽ गेल। होम्योपैथी पर विश्वास जमऽ लागल। हम ओकर पुस्तक खरीदलपढाइ कऽ कऽ डिग्रीयो लेलहुँ दवाइ रखनाइ प्रारंभ कऽ देल।आर अपन परिवार तथा निजी लोकक होम्योपैथी सँ इलाजो करऽ लगलौ।

Thursday, January 5, 2017

Sondaika Sohag: Maithili Novel by Dayanand Mallik

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सोनदाइक सोहाग (मैथिली उपन्यास)
SONDAIK SOHAG: Maithili Novel by Dayanand Mallik, Edited by Ramakant Rai 'Rama', Published by Esamad, Darbhanga, 2016,  150.00

लेखक- दयानन्द मल्लिक
प्रकाशन वर्ष- 2016 ई.
प्रति 300
© श्री जय चन्द्र भगवती, ग्राम एवं पोस्ट-मेघौल, जिला-मधुबनी
संग्रहण एवं संपादन - श्री रमाकान्त राय रमा
संयोजन -श्री भैरव लाल दास
आवरण ओ साज-सज्जा- श्री भवनाथ झा, पटना
प्रकाशक- इसमाद, मातृ सदन,कटहलबाड़ी, दरभंगा–846004, फोन नं.-08541815531

सहयोग राशि- 150.00 (एक सय पचास) टाका मात्र
मुद्रक Impression Publication, Salimpur Ahra 'Baulia, Kadamkuan, Patna-800003

मूलतः मेघौल, मधुबनी निवासी एवं खाजासराय, दरभंगाक रहवासी जयवल्लभ मल्लिक, दयानन्द मल्लिक (द.न.म.) उपनामे मैथिली लेखनमे संलग्न रहल छलाह। हिनक तीन गोट रचनाक सूचना अछि क्रमशः नारी सँ, एक मुट्ठी छाउर आ सोनदाइक सोहाग। ...

Mithila Bharati, vol.3, 2016

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Mithilå Bhåratë
Bilingual Quarterly Research Referral Journal
B-402, Shri Ram kunja Apartment, Road No.- 4,
Mahesh Nagar, P.O. Keshri Nagar, Patna, 800024.
Phone: 09430606724 & 09835884843
Email : blds412@gmail.com & skmishra2612@gmail.com
Web: www.maithilisahityasansthan.org
Editors: Dr. Shiva Kumar Mishra & Shri Bhairab Lal Das.
Year - 2016.
ISSN 2349-834X
सहयोग राशि `  450.00 (चारि सय पचास टाका मात्र)
Price- Rs. 450 (Four Hundred Fifty only)
प्रकाशक- मैथिली साहित्य संस्थान, पटना
टाइप सेट एवं सज्जा- भवनाथ झा, ब्राह्मी प्रकाशन
email: bhavanathjha @gmail.com, phone: 9430676240
मुद्रक- वातायन मीडिया एण्ड पब्लिकेशन्स, प्रा. लि., फ्रेजर रोड, पटना- 800001
फोन- 0612-2222920, मो. 9431040941

मिथिला भारतीक तेसर भागक संपादकीय आ विषय सूची-
सम्पादकीय
मिथिला भारतीक नवांक शृंखलाक तीन अंकक सफलतापूर्वक प्रकाशन मे विद्वान् लोकनिक सहयोग अनुपम रहल। एहिमे मिथिलाक संस्कृति एवं परम्परा, पुरातत्त्व, भाषा, लिपि प्रभृति विषय सँ सम्बन्धित नव अनुसंधान संदर्भ समेत आलेख सभ प्रकाशित करबाक प्रयास कएल गेल अछि। आशा अछि जे विद्वत् समाजकें हमरालोकनिक प्रयास नीक लगतनि। 
एहि तेसर अंक मे किछु नव आ किछु पुरान मुदा शोधपूर्ण आलेख प्रकाशित कएल जा रहल अछि। पुरान आलेख आचार्य परमानन्दन शास्त्रीक ‘मिथिलाक्षरक उत्पत्ति’ नामक आलेख केँ पुनर्मुद्रित कयल जा रहल अछि। एहि आलेखक प्रेरणा साहित्य अकादमी द्वारा अगस्त, 2015 मे आयोजित आचार्य परमानन्दन शास्त्रीक जन्मशताब्दी वर्षक समारोह सँ भेटल। एहि समारोह मे आचार्यजीक व्यक्तित्व, कृतित्व आ लिपिक क्षेत्र मे हुनक योगदान विषय पर शोध आलेख पढ़बाक सुअवसर भेटल छल। शास्त्रीजी ‘मिथिलाक्षरक उत्पत्ति आ विकास’ सऽ सम्बन्धित दस टा शोध आलेख 1960 ई. मे ‘मिथिला मिहिर’क विविध अंक मे प्रकाशित भेल छल जे बड़ बेसी शोधपरक आ ज्ञानवर्द्धक अछि। आशा अछि जे लिपिसँ सम्बन्धित शोधार्थी लोकनिक लेल आ लोक सेवा आयोगक परीक्षाक अभ्यर्थीगणक लेल बेसी लाभप्रद भऽ सकत। एहि आलेख सभक अध्ययनक प्रेरणाक लेल साहित्य अकादमी विशेष रूपसँ मैथिलीक प्रतिनिधि प्रोफेसर डा. श्रीमती वीणा ठाकुरक प्रति आभार। ‘मिथिला मिहिर’क उपर्युक्त अंक सभकें उपलब्ध करबामे एकटा दोसरे आनन्दक अनुभूति भेल। आदरणीय गुरुवर प्रोफेसर डा. भीमनाथ झाक सहयोग आ डा. अवनीन्द्र कुमार झा, शोधार्थी, दरभंगा, आ डा. सुशान्त कुमार झा, शिक्षक, बेगूसरायक परिश्रम सऽ ई अंक सभ उपलब्ध भय सकल।आभार।
मिथिला भारतीक दोसर अंकक लोकार्पण सह व्याख्यानक कार्यक्रम जे 12 दिसम्बर 2015 कऽ मैथिली साहित्य संस्थानक तत्त्वावधान मे आयोजित कएल गेल छल ताहिमे प्रोफेसर प्रफुल्ल कुमार सिंह ‘मौन’जीक ‘नेपालीय मैथिलीक विकास मे संस्थागत योगदान’ विषय पर व्याख्यान सेहो भेल छल। संगहि, 8 जनवरी 2016 कऽ मैथिली दिवसक अवसर पर श्री गजानन मिश्रक (भा.प्र.से.) ‘मिथिलाक माँटि-पानि: समस्या आ संभावना’ विषय पर शोध आलेख पढ़ल गेल छल। दूनू आलेख के एहिमे प्रकाशित कएल जा रहल अछि। सौभाग्यक विषय अछि जे मिथिलाक वरिष्ठ साहित्यकार पं. गोविन्द झाक आलेख प्रकाशित कय हमरालोकनि गौरवान्वित छी।
राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्लीक महानिदेशक डा. बुद्धरश्मि मणि महोदयक संग वैशालीक संग्रहालय आ आन-आन पुरास्थलक भ्रमणक क्रम मे वैशाली संग्रहालय मे देशक सभसँ पुरान, दुर्लभ, कुशाणकालीन शौचालय पैन देखल गेल जे पाकल माटिक बनल अछि। ई पैन एहि बातक साक्ष्य अछि जे मिथिलामे स्वच्छता आ शौचालयक प्रति लोक कतेक साकांक्ष छलाह। एहि पर शोध आलेख तैयार करबाक भार ओहि संग्रहालयक सहायक अधीक्षण पुरातत्त्वविद् डा. जलज तिवारी केँ देल गेल जे आलेख एहि अंक मे अछि। 
आदरणीय गुरुवर प्रो. डा. रत्नेश्वर मिश्र अपन शोध आलेख लय पहिलुक अंक जकाँ एहि अंक केँ सेहो सहयोग देलनि अछि। आभार।
एहि वर्ष मिथिलाक कतोक क्षेत्रसँ दुर्लभ प्रतिमा आ शिलालेख सभ भेटल अछि एहिमे ओकरा समुचित स्थान देबाक प्रयास कयल गेल अछि। वर्णरत्नाकर केँ एकटा राजशास्त्रीय ग्रन्थ सिद्ध करबाक प्रयास डा. शंकरदेव झा द्वारा कयल गेल अछि। एकर संगहि कनाडा विश्वविद्यालयक प्रो. आनन्द मोहन शरण, प्रो. समरेन्द्र नारायण आर्य, डा. उदयनाथ झा अशोक द्वारा क्रमशः शक संवत्, पर्यावरण आ वेद एवम् वत्सगोत्रीय प्रवरविचार सँ सम्बन्धित शोधपूर्ण आलेख केँ स्थान देल गेल अछि।
बौद्धस्थलक विवेचना आ स्वातन्त्रय आन्दोलनमे मैथिली साहित्यक अवदानक चर्चा कें स्थान देल गेल अछि। संगहिं डा. अशोक कुमार सिन्हा द्वारा झिझियाक पुरातात्त्विक अध्ययन पर आलेख सेहो एतए संकलित अछि। डा. पंकज कुमार झा ‘वैद्यनाथ मिश्र ‘यात्री’क सामाजिक संदर्भ’ विषय पर तथ्यपरक विश्लेषण उपलब्ध करौलनि अछि, सेहो एहि मे अछि।
पद्मश्री उषाकिरण खान द्वारा दिनांक 28 मई, 2016 कऽ सोनदाइक सोहाग नामक पत्रात्मक उपन्यासक लोकार्पण करैत ‘स्त्री-विमर्श’ पर व्याख्यान देल गेल, जकरा ‘पुस्तक समीक्षा’ नामक अध्याय मे स्थान देल गेल अछि। संगहिं डा. सुशान्त कुमारक दरभंगा प्रक्षेत्रक पाषाण प्रतिमा नामक नवीनतम शोध-ग्रन्थक समीक्षा सेहो प्रस्तुत कयल जा रहल अछि।
दुःखक संग कहय पडै़त अछि जे पछिला अंकमे अन्वेषणक अध्याय मे कुलहरिया, बाबूबरही, मधुबनीक जाहि उमा-महेश्वरक विलक्षण प्रतिमाक प्रकाशन कयल गेल छल, दिनांक 3 सितम्बरक राति मे तस्कर द्वारा गायब करबाक प्रयास कयल गेल मुदा अन्धराठाढ़ीक पुलिसक नजरि पड़लनि आ प्रतिमा भेटि गेल। तदुपरान्त थाना अदालतक दौड़-बरहा प्रतिमा लऽ कऽ भय रहल अछि, मुदा मैथिल बुद्धिजीवी वर्ग धरोहरक प्रति उदासीन रहलाह। एहिना विदेश्वर स्थानक शिवमन्दिर आ सहरसाक संग्रहालय सँ महात्मा बुद्ध आ ताराक प्राचीन आ दुर्लभ प्रतिमाक अतिरिक्त कतोक प्रतिमा सभ तस्करीक भेंट चढ़ि गेल मुदा कतहु सँ कोनो संवेदना नहिं जागल। तहिना राजनगर, भौरागढ़ी आ दरभंगाक वास्तुकलाक क्षरण आ दुर्दशा पर सेहो ई समाज निःस्पृह बनल रहल। एहना स्थितिमे भविष्यक पीढ़ीक वास्ते हम कोनो थाती कोना बचा कऽ राखि सकब।
अन्त मे सम्पादक मण्डलक विद्वान् लोकनिक प्रति आभार, जनिक सहयोगक विना मिथिला भारतीक प्रकाशन असम्भव अछि। पुरालेख विशेषज्ञ पं. भवनाथ झाक विद्वत्ता आ तकनीकी ज्ञानक सहयोग हरदम भेटैत रहल अछि। धन्यवाद। शोधज्ञलोकनि सँ पुनः आग्रह जे गम्भीर अनुसंधान कऽ मिथिला भारती के सहयोग दय दीर्घायु बनावथि।
सम्पादकगण
विषय-सूची
1. मिथिलाक नऽव भेटल किछु दुर्लभ पुरावशेष - शिव कुमार मिश्र 1





Tourist Directory: Sikh Circuit, Bihar

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Sikh Circuit in Bihar

Tourist Directory: Sikh Circuit, Bihar
Sikh Circuit in Bihar
A Guide book for Gurudwaras in Bihar along with the history and story of all Sikh Gurus in Hindi.
Edition : 2016
(C) All right reserved: Shangum MassCommunications Pvt. Ltd., Patna
Vision, Research, compilation and written by : Ravi Sangam
Scanned, Designed and composed by: Bhavanath Jha
Inner page Photographs: by Shangum Mass Communications Pvt. Ltd., Patna

Price: Rs. 200.00

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Bhavakautukam of M.M. Ravinatha Jha,

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म.म. रविनाथझाविरचितम्
भावकौतुकम्
(व्याकरणसूत्रपरिष्कारप्रदर्शकम्)
Bhavakautukaî of M.M. Ravinåtha Jhå, A refinement and analysis of 13 Sýtras of Påïini's Aúûådhyåyë, in the style of Navya-nyåya methodology, edited by Dr. Sadanand Jha, Darbhanga, 2015
सम्पादकः
डॉ. सदानन्द झाः
व्याकरणविभागाध्यक्षः,
जे. एन. बी. आदर्शसंस्कृतमहाविद्यालयः,
लगमा-रामभद्रपुरम्, दरभङ्गा (बिहारः) 
परिष्कृतं प्रथमं संस्करणम्200 प्रति
© प्रकाशकः
प्रकाशनवर्षम्2015 ई.
पृष्ठम्  14+178
मूल्यम्` 400
ISBN 13-978-81-928652-9-4
प्रकाशकः
शशिनाथ झा
ड्यौढ़ी पश्चिमम्,
शुभङ्करपुरम्, दरभङ्गा 846006
मो. 9199475909
टाइपसेटभवनाथ झा, पटना, Mob:9430676240
                     bhavanathjha@gmail.com

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