Thursday, January 5, 2017

Veda Sań Loka Dhari [From Sacred to Mundane] by Govinda Jha in Maithili language.

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वेद सँ लोक धरि
Veda Sań Loka Dhari [From Sacred to Mundane] by Govinda Jha in Maithili language.
लेखक- गोविन्द झा
सम्पर्क: 9334102305; 9431460793
© गोविन्द झा
प्रथम संस्करण 2016
प्रति 200 (दू सए मात्र)
मूल्य- रु.175 (एक सए पचहत्तरि टाका मात्र)
प्रकाशक- ब्राह्मी प्रकाशन, द्वारा- भवनाथ झा, हटाढ़ रुपौली, झंझारपुर, मधुबनी, 847404
                 Email: bhavanathjha@gmail.com, Phone : 9430676240

आदिकथा
प्रस्तुत पुस्तक वर्तमान स्थितिक वर्णन थिक। अतीत दिस तकैत छी तँ देश मे, विशेष कए विदेह मे, दू समाजक अद्भुत सगम लक्षित होइछ। पहिल आदिम आ दोसर वैदिक। दूनूक प्रतीक थिक मैथिलीक प्रसिद्ध युग्मशब्द लोकवेद। लोक थिक नाना जाति-प्रजातिक बहुरंगी विशाल समुदाय। सभक अपन-अपन कर्म, धर्म, संस्कृति आ शासन। वेद थिक चारि वर्णवाला वैदिक समाज। चारूक धर्म आ शासन एक, किन्तु कर्म भिन्न-भिन्न। पहिल अर्थात् आदिम समाजक सर्वसामान्य धर्म छल तान्त्रिक-सह-शैव। ई सम्प्रदाय अफगानिस्तान मे किरातजन बीच जन्म लेलक तहिं शिव कर्पूर-सन गोर आ पार्वतीक नाम गौरी। काश्मीर एहि धर्म कें दर्शन बनाए देलक- पाशुपत दर्शन वा काश्मीरी शैव दर्शन। पौराणिक त्रिदेव मे शिव तँ रहि गेलाह, हुनक गौरी नारी सँ नर ब्रह्मा भए गेलीह परन्तु काज ओएह रहलनि सृष्टि करब। काश्मीर सँ चलल ई तान्त्रिक-सह-शैव सम्प्रदाय भुटान, नेपाल होइत भारत पहुँचल तँ गौरी कें भेटलथिन कोलजनक एक सखी। देहक वर्ण पर नाम भेलनि काली। हिनका संग बहुत रास डाइनि-जोगिनि (डाक-डाकिनी, शाकिनी, योगिनी) आ ओझा-गुनी छलथिन। ई लोकनि नाना तरहक यन्त्र, मन्त्र, तन्त्र (धार्मिक जादू), टोना-टापर (लौकिक जादू) जनैत छलाह। ई तान्त्रिक-सह-शैव सम्प्रदाय कोनो वर्गविशेषक नहि, पूर्ववर्णितसकल कर्मजीवी समाजक छल। एकरा लोकधर्म कहि सकैत छी, जेना लोकाचार।
ई लोकधर्म कालक्रमें एक ठाम रहैत-रहैत वैदिक समाज मे सेहो सन्हिआए गेल। एहि दूनूक संगम सँ वैदिक समाज, विशेष कए मिथिला पंचदेवोपासक भए गेल- शक्ति, शिव, सूर्य, अग्नि आ विष्णु। एहि प्रकारें समन्वित धर्मक नाम भेल सनातन धर्म। शिव-पार्वतीक दिव्य दाम्पत्य नर-नारीक लौकिक दाम्पत्यक प्रतिमान भए गेल आ अन्ततः नर-नारीक ई मधुर संगम सिद्धिक एक नव पन्थ भए गेल जकर मूर्धन्य साधक आ मार्गदर्शक भेलाह चैतन्य महाप्रभु।
फेर आउ पूर्वक प्रसंग पर। आचार्य बुद्धदेव वैदिक परम्परा कें हिंसा सँ मुक्त कए कालक्रमें दशम अवतार होएबाक महान् प्रतिष्ठा प्राप्त कएल - केशव धृतबुद्धशरीर जय जगदीश हरे। जन्मस्थान विदेह मे नैष्ठिक लोकनि कें अहिंसा आ सदाचारक पाठ पढ़ाए अपन नव धर्मक प्रचार करए गंगाक ओहि पार चलि गेलाह।
कालक्रमें बुद्धदेवक संघ दू फाँक भए गेल। बहुसंख्य फाँक महायान कहओलक आ तत्काल लोक बीच प्रचलित तान्त्रिक-सह-शैव धर्महि कें बौद्ध धर्म बनाए लेलक। शिवक नव नाम भेल म×जुश्री, गौरीक नाम तारा। बुद्ध साक्षात् ईश्वर मानल जाए लगलाह आ नैष्ठिक लोकनिक नाना देवी-देवता नाम बदलि-बदलि विविध बोधिसत्व बनैत गेलाह।
संघक अल्पसंख्यक फाँक हीनयान बुद्धदेव कें ईश्वर नहि, आदर्श महापुरुष मानल आओर हुनक उपदेश आ दर्शन कें आदर्श धर्म। हीनयान ठामहि रहल। महायान तिब्बत पहुँचि ओहि ठामक तान्त्रिक-सह-शैव सम्प्रदाय कें बौद्ध धर्मक नामें प्रचारित करैत, नेपाल, भूटान, भारत, चीन होइत जापान धरि पहुँचल। अनेक शतकक एहि महा(अभि)यान मे गौरी तारा भए गेलीह आ हुनक स्थान लेलनि एक नव देवता ब्रह्मा। नव दर्शन विकसित भेल- तीन गुण आ तीन देवता ब्रह्मा, विष्णु, महेश। ई महायान पूर्वी द्वीप पहुँचल तँ एक द्वीपक नाम भेल बर्मा (आजुक म्याङ मेर)। एही संग दूनूक बीच मे वैदिक विष्णु आसन पाओल। ़
अन्ततः देश मे ने वैदिक धर्म रहल, ने बौद्ध धर्म, दूनूक स्थान लेलक सनातन धर्म (जकरा मुसलमान सभ हिन्दू धर्म कहए लागल)। सम्प्रति मिथिला मे गौरी-शंकर लोकक देवता छथि आ लक्ष्मी-नारायण वेदक देवता। सार रूप मे इएह भेल वेद सँ लोक धरिक आदिकथा। 

04.07.2016                         गोविन्द झा

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