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सात रेखा सात रंग
Saat rekhaa saat rang
[Seven essays on different topics in Maithili]
by Govinda Jha, 2015
लेखक- गोविन्द झा
मैथिली के सुप्रतिष्ठित साहित्यकार पं. गोविन्द झा द्वारा मैथिली में लिखित सामाजिक इतिहास विषयक पुस्तक।
सात रेखा सात रंग (विविध विषयक सात निबन्ध)
लेखक - गोविन्द झा
© स्वत्व - गोविन्द झा, 104, सती चित्रकूट अपार्टमेंट, गंगापथ, पटेलनगर (पश्चिम), पटना, 800023
प्रथम संस्करण- 2015 ई.
प्रति- 300
मूल्य -70 (सत्तरि) टाका
ISBN 978-93-84394-20-2
प्रकाशक- साहित्यिकी, सरिसब-पाही, (मधुबनी), बिहार
आवरण शिल्प राकेश कुमार
पुस्तक सज्जा- भवनाथ झा
मुद्रक- प्रकाश आॅफसेट, धरहरा कोठी, पटना
पुस्तक के विषय में लेखक की भूमिकाः
प्रासंगिकी
प्रस्तुत पुस्तक मे विभिन्न विषयक सात टा निबन्ध अछि। तें नाम ‘राखल सात रेखा सात रंग’। परन्तु ई सातो मिलि कें एके छवि अँकैत अछि- अपन गाम अपन लोक। एहि दुनूक सम्बन्ध मे जे किछु देखल, अनका सँ जानल आ पोथी-पतरा मे पढ़ल जेना-तेना खड़रि गेलहुँ। एकरा इतिहास नहि, मात्र संस्मरण बूझल जाए जे बुढ़ारी अवस्था मे अकट काल कटबाक लेल लिखैत गेलहुँ। अपना जनैत हम केवल तथ्य लिखल। ओकरा निन्दा कि प्रशंसा बूझब पाठकक मनोवृत्ति पर निर्भर अछि। हँ, तथ्य मे जे भ्रान्ति हो तकर दोषी हम। जे जन्मकाल मे सभ सँ पहिने हमरा छूलक आ जे हमर अन्तिम संस्कार लेल आगि देत सेहो ओहिना हमर अपन लोक जेना माता-पिता। खेद जे एहि मे अपन सभ लोक कें समुचित स्थान नहि दए सकलहुँ। कारण स्पष्ट अछि। अपना चलबा-फिरबाक सामथ्र्य नहि, आन केओ गौआँ संग देनिहार नहि। एहि असन्तुलनक एक कारण छल ऐतिहासिक स्रोतक दुर्लभता। सोचने रही जे एहि संस्मरण कें 2000 ई. धरि पहुँचाबी, परन्तु 1960 पहुँचैत-पहुँचैत थस लेलहुँ। ताहि सँ आगाँ पतिकरनी बूझू। तकरा बाद अपन गाम आ अपन लोक कोना-कोना अपना सन सँ अनका सन होइत गेल से आशा जे गामक केओ भावी सन्तान लिखत।
- गोविन्द झा
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