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Bhavanath Jha, Book Publication Consultant.
Brahmi
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of Manuscript: From Old Devnagari to Modern Davnagari,
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क्रियापद-कोश
Kriyapada-Kosh [ Rearranged version of
Dhatupath by Dinabandhu Jha] verb roots in Maithili. Edited by Bhavanath Jha, 2016.
लेखक- दीनबन्धु झा
सम्पादक - पं. भवनाथ
झा
© स्वत्व- गोविन्द झा, 104,
सती चित्रकूट अपार्टमेंट, गंगापथ, पटेलनगर (पश्चिम),
पटना, 800023
प्रथम संस्करण- 2016 ई.
प्रति- 200
मूल्य- 175 (एक सय पचहत्तरि) टाका
प्रकाशक- ब्राह्मी प्रकाशन, द्वारा- भवनाथ झा हटाढ़
रुपौली, झंझारपुर, मधुबनी, 847404
सम्पादकक
दू आखर
विद्वद्वर
पं श्री गोविन्द झा अपन पिताक मिथिलाभाषाधातुपाठक सम्पादन करबाक भार हमरा देलनि तँ
एकहि संग गौरव, हर्ष आ विस्मय तीनू विह्नल कए देलक। पुछलिअनि, एकर
सम्पादन तँ दू बेर सुचारु रूपें भए चुकल अछि, तखन हमरा की करबाक होएत? ‘रिकास्ट
करबाक होएत’ -एही तीन शब्द मे स्पष्ट उत्तर भेटि गेल। अर्थात् मूल मे
वर्णानुक्रम जे ककारान्त, खकारान्त इत्यादि क्रमें अछि तकरा ककारादि, खकारादि
क्रमें पुनर्विन्यस्त करब। एहि नव रीतिएँ क्रमविन्यास करब तँ यन्त्र कोनहुना कए
देलक परन्तु से कएला पर बहुत रास धातु आ
तकर अर्थ दोहराएल-सन लागल। जेना-
अरघ
- ठोठक नीचाँ अटकब। ई औषध नहि अर्घलैन्हि वा अरघलैन्हि ....।
अर्घ
- ठोठक नीचाँ अटकब। ई औषध नहि अर्घलैन्हि वा ...।
मूल
मे ई भिन्न-भिन्न स्थान मे छल तें दोहराएल। एहि नव क्रम मे एहन-एहन पुनरुक्ति हटाएब आवश्यक बुझाएल आ तकरा सुधारबाक
दुःसाहस कएल। पहिल यथावत् रहए देल, दोसर मे अर्थ लिखबाक बदला पूर्ववत् ई
संकेत दए देल। मूल मे दू शब्दक अर्थ छूटल छल। दूनूक अर्थ अपना मने जोड़ि देल। कतोक
धातुक अर्थ तँ भिन्न-भिन्न किन्तु स्वरूप समान। एहन ठाम सुपरस्क्रिप्ट 1 आ 2 अपना
मनें चढ़ाए देल अछि।
प्रस्तुत
पुस्तक मूलतः व्याकरणक परिशिष्ट छल तें
धातु तीन गण (वर्ग) मे विभक्त छल- जकादि, छकादि आ बिकादि ( मिलाउ- छकल, जाकल, बिकाएल)।
एतए जकादिक संकेत (ज) आ बिकादिक (बि) राखल अछि। शेष छकादि जानल जाए। एहिना सकर्मक
होएबाक संकेत एहि मे (स) राखल। शेष अकर्मक।
मूल
पुस्तकक नाम छल धातुपाठ। ई नाम महावैयाकरण स्पष्टतः पाणिनि सँ लेलनि आ व्यकरणक
परिशिष्ट होएबाक कारणें से उपयुक्त छल। हम एकरा नव नाम देल क्रियापद-कोश, कारण
जे धातु संस्कृत व्याकरणक अवधारणा थिक। एकर अवधारणा लोक बीच लुप्त भए गेल अछि।
क्रियापद-कोश संस्कृत मे तँ एक टा जनैत छी- आख्यात-चन्द्रिका, परन्तु
आन भाषा मे प्रायः प्रस्तुत पुस्तक प्रथमे होएत। ओना तँ एहि मे संगृहीत लगभग सभ
धातु महावैयाकरणक मिथिला-भाषाकोष मे अछिए, एकर एक प्रमुख विशेषता थिक वाक्य मे
प्रयोग देखाएब। भारतीय भाषाक कतोक कोष मे प्रयोग-प्रदर्शन हाल मे चलल अछि, परन्तु
महावैयाकरणक दृष्टि एकर उपयोगिता पर आइ सँ करीब सए वर्ष पूर्वहि पड़ल।
थिक
तँ ई मैथिली-सँ-मैथिली द्विभाषी कोश, परन्तु एहिमे अर्थ जानि-बूझि कें
प्रथमतः सार रूप मे संस्कृत शब्द सँ देल गेल अछि जाहि सँ ई केवल मैथिलक हेतु नहि, अनको
हेतु उपयोगी हो। मैथिल तँ प्रयोग-प्रदर्शनहु सँ अर्थ बूझि सकैत छथि।
आनक
कृति मे कोनहु प्रकारक हस्तक्षेप अपराध थिक से जनितहुँ हम ई अपराध कएल। आशा जे
सुधी पाठकगण हमर ई सदाशयी अपराध क्षमा सकताह।
प्रस्तुत
पुस्तक मे दू आलेख जोड़ि देल गेल अछि। पहिल थिक लक्ष्य आ उपलब्धि जे पंडितप्रवर
गोविन्द झा हमर अनुरोधें अनुग्रहपूर्वक लिखि देलनि। दोसर थिक मैथिली मे युग्मनाम
जे महावैयाकरण स्वयं प्राच्यविद्या-महासम्मेलनक दरभंगा अधिवेशन मे पढ़ने रहथि। ई
आलेख प्रस्तुत पुस्तकक विषयक बहुत निकट अछि तें एतए परिशिष्ट रूपें समाविष्ट कए
लेल गेल।
11.08.2016 भवनाथ झा
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