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Brahmi
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of Manuscript: From Old Devnagari to Modern Davnagari,
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नवरंग (रंगमंचोपयोगी नओ गोट मैथिली नाटिकाक संग्रह)
Navaranga A collection of
one-act plays by Govind Jha, 2015
लेखक- गोविन्द
झा
© स्वत्व- गोविन्द झा, 104, सती चित्रकूट अपार्टमेंट, गंगापथ, पटेलनगर
(पष्चिम), पटना,
800023
प्रकाशनवर्ष-
2015 ई.
प्रथम
संस्करण- 2015 ई.
प्रति- 300
मूल्य- 70 (सत्तरि)
टाका
ISBN 978.93.84394.16.6
प्रकाशक- साहित्यिकी, सरिसब-पाही, (मधुबनी), बिहार
आवरणशिल्प-
राकेश कुमार
पुस्तक
सज्जा- भवनाथ झा
मुद्रक- प्रकाश
ऑफसेट, धरहरा कोठी, पटना
पुस्तकक
मादे
‘‘सम्पूर्ण साहित्यकारक रूप मे गोविन्द बाबू
कें चिन्ता छनि जे जनिका मिथिलाक कला, संस्कृति आ साहित्यक छूति नहिं ओ प्रतिनिधि बनबाक
लौल करै छथि; एखनहुँ एहन लोक छथि जे बाबाक अमलदारी मे बान्हल हाथीक सिक्कड़
पँजियौने छथि; समाज मे झगड़ा पसारि अपन जीविका चलौनिहार रूदल काका के केना
बाट ध्राओल जाएऋ स्वार्थ मे आन्हर मनुख केना गदहो सँ बत्तर भऽ गेल अछि; की वैवाहिक
सम्बन्ध मात्र नियोक्ता आ नियुक्तक समझौता मात्रा थिक? गोविन्द
बाबू समाजक विडम्बना कें देखैत छथि जे केना अज्ञात बच्चा तँ स्नेहभाजन बनैत अछि आ
अपन घरक अविवाहिताक बच्चा डबरा मे फेकबाक वस्तु बनि जाइत अछि! एक दिस प्रजा
भूखल-नाङट अछि आ दोसर दिस राजाक दरबारी सभ राजा कें ठकैत छथि जे प्रजा सुखी अछि।
गामक स्कूल गहूमक वितरण-केन्द्र बनि गेल आ शहरक स्कूलक लोभ दए गामक बच्चा कें
श्रमिक बनाओेल जा रहल अछि आ स्वप्नो मे नारी-मुक्तिक बाट केना बदरंग भए जाइत अछि-
ई सभ टा रंग एतए नओ गोट एकांकीक रूप मे सोझाँ अबैत अछि। नाटककार गोविन्द बाबूक पूर्व-प्रकाशित
रंगमंचोपयोगी एकांकीक संकलन थिक- नवरंग’’
लेखकक
भूमिका
नेपथ्य सँ दू आखर
‘बसात’ बहुत दिन धरि
गाम-गाम मे बहैत रहल परन्तु एको मंचन हम देखि नहि पओलहुँ। पहिल बेर देखल कलकत्ता
मे, प्रकाशन सँ दस वर्ष पछाति। चेतना समिति हमर
दू नाटक खेलाएल, परन्तु निर्देशक हमरा सँ काते रहलाह।
दू-तीन बेर मंच पर उतरलहुँ आ असफलता मे प्रथम स्थान पाओल। शेखर जी उपदेश दैत रहलाह,
जकरा मंचक अनुभव नहि, तकरा नाटक नहि लिखबाक चाही। जीवन मे कहिओ पटना सँ बाहर आधुनिक मंच नहि
देखल। मैथिली मे प्रथा चलल, अपनहि लिखू,
अपनहि मंच बनाउ, अपनहि
निर्देशक बनू आ अपने टा नाटक देखाउ। ईहो काज हम कहिओ कए नहि सकलहुँ। एहनो स्थिति
मे हम थेथरपनी करैत जे किछु लिखैत रहलहुँ तकरे किछु बचल-खुचल अंश थिक ई नवरंग।
-गोविन्द झा
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